न कोई चिन्ता है,न कोई फिकर, आये है कहां से,जाना है किधर सराय को समझ कर,है घर अपना, सब पर यहां मदहोशी छाई हुई है शरीरों के बने मकान कई हिलने लगे है, जिन्हे कहते थे अपना रोज बिछड़ने लगे है फिर भी दुनिया मे हर तरफ बेहोशी छाई हुई है झुठी शान सराय मे सबने,अपनी बनाई हुई है कभी तो यह सोचो,कभी तो यह समझो, सराय मे क्या यह सब करने आये हुये है।