रूह में जल उठे, बुझती हुयी यादों के दिये कैसे दीवाने थे, आप को पाने के लिये यूँ तो कुछ कम नहीं जो आप ने एहसान किये पर जो मांगे से ना पाया, वो सिला याद आया आज वो बात नहीं फिर भी कोई बात तो हैं मेरे हिस्से में ये हल्की से मुलाकात तो हैं गैर का हो के भी ये हुस्न मेरे साथ तो हैं हाय किस वक़्त मुझे कब का गिला याद आया .... आप आये तो खयाल-ए-दिला-ए -नाशाद आया कितने भूले हुये जख्मों का पता याद आया...