रोटियों का सपना अभी अधूरा है

ख़ुशी के फूल खिलेंगे हर इक घर में तो ईद समझूँगा धनक के रंग बिखरेंगे हर इक घर में तो ईद समझूँगा बुलबुलें गाती नहीं हैं अभी कोयल कूकने से डरती है जब सर से उतरेगा ये ख़ौफ़े-अलम तो ईद समझूँगा भूख की आँखों में रोटियों का सपना अभी अधूरा है जब चूल्हा जलेगा हर इक घर में तो ईद समझूँगा हामिद की निगाह अब भी चिमटे पे जमी रहती है कि वो भी ख़रीदेगा जब खिलौने तो ईद समझूँगा ख़ुदा क़फ़स में उदास बैठा है शैतान खिलखिलाते हैं जो निज़ाम कायनात का बदलेगा तो ईद समझूँगा भूल कर नफ़रत-अदावत रंज़ो-ग़म शिकवे-गिले सब भेजेंगे जब सबको सलाम तो ईद समझूँगा

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