हमारी भविष्य की सोच के ढांचे में फिट बैठता अवार्ड लौटाने का सिलसिला

लेखको, साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओ, वैज्ञानिको द्वारा अवार्ड लौटने का सिलसिला जारी है.सवाल पूछने के राष्ट्रव्यापी दौर में जवाब के बदले दूसरा सवाल दागने की बौद्धिकता के पैमानों व भविष्य के निर्माण वाले मुद्दो पर वर्तमान के कार्य को भूतकाल के उदाहरणों से रोंदने के नये प्रशासनिक एवं सामाजिक जिम्मेदारों के तर्कों के मध्य आपके पसंद किये गए "वैज्ञानिक-विश्लेषण" की भविष्य परिकल्पना में लगातार नये-नये घटनाक्रम एकदम फिट बैठ रहे है.

मानो वे भविष्य की सोच वाले ढांचे के ही पूर्व निर्धारित हिस्से हो | अर्धशतक व शतक की तरफ बढ़ता अकादमी एवं राष्ट्रीय पुरुस्कारों को लौटने का मामला भी हमारी सोच में फिट बैठ गया | हमारे वैज्ञानिक-विश्लेषण "विज्ञान की नजर में ऐसा होगा आरक्षण का भविष्य इसी बीच असली टकराव होगा सोच के बढ़ते विकास के साथ व जिम्मेदारों के "राष्ट्र" के प्रति जनता के कर्तव्य के मुफ्त ज्ञान बाटने से | सामाजिक संगठन की सोच से राष्ट्रीय सोच के मध्य क्षेत्रीय व मानवीय जाति की सामूहिक सोच को विलोपित करना बड़े गड्ढे का निर्माण करेगा.अवॉर्ड लौटने के कारणों में प्रमुख देश में सहिष्णुता/असहिष्णुता है जो राष्ट्रीय सोच का हिस्सा है |

जिसमे लेखको, साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओ, वैज्ञानिको के अलग-अलग संगठनो का समावेश हो रहा है | करीबन 53 इतिहासकारो का जारी सयुंक्त बयान, 135 वैज्ञानिको का राष्ट्रपति महोदय को सम्बोधित कर एक ऑनलाइन याचिका अलग-अलग समूहों का घोतक है | दादरी में भीड़ का हमला, व्यक्ति विशेष को टारगेट करना, सार्वजनिक कार्यकर्मो में तोड़-फोड़, होटलों में जबरन घुस तोड़-फोड़ आदि क्षेत्रीय व मानवीय जाति की सामूहिक सोच के दायरे में आते है |

इसे भी आप बढ़ती सोच के साथ नकार नहीं सकते | हमने वैज्ञानिक-विश्लेषण "ये आरक्षण की आग राष्ट्रीयता के हित में है उसमे लिखा था  "विश्वाश रखिये समय कि चाल पर और सोच के बढ़ते दायरे पर भविष्य में इस प्रकार के 250 -300 संगठन से ज्यादा इस देश में नहीं बनेगे | जिस दिन किसी एक मुद्दे (जैसे - बलात्कार, काला धन, बेरोजगारी, घूसखोरी आदि) पर यह 250 संगठन एक हो गये उस दिन "राष्ट्र" जीवित हो जायेगा." अभी समय चल रहा है अलग-अलग मुद्दो पर राष्ट्रीय संगठनो के निर्माण का हमेशा की तरह जिम्मेदार लोग न्याय एवं दूरदर्शिता से कोई निर्णय नहीं लेंगे इसलिए समय को ही तय करना पड़ता है की हम लोगो का आगे क्या करना है.

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