स्वार्थी रिश्ते कब अपना रंग बदल दे कम पड़ गए गिरगिटी रंग,, भरोसे की गलाकाट प्रतियोगिता कब नीव विश्वास की हिला दे,,, नही लगता अपना कोई मतलबी संसार मे चूलें कब हिल जाये घर और परिवार की कहाँ कहते थे ये रिश्तेदार हम है ना जब वक़्त आया तो नदारत थे सभी,,,,