रहता हूं किराये की काया में

रहता हूं किराये की काया में, रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं...! - मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी, बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं...! - जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन, फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं...! - मुझे पता हे मैं खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूंगा,  इसीलिए मैं दोस्त बनाता हूँ ...!!

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