बिस्मिल का आखिरी पैग़ाम भारत के नाम

शहादत के एक दिन पूर्व पं. रामप्रसाद बिस्मिल जी ने अपने मित्र को एक खत लिखा, जिसके कुछ अंश:

"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूं। आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"

यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रों बार भी।

तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।

हे ईश! भारतवर्ष में, शत बार मेरा जन्म हो।

कारण सदा ही मृत्यु का, देशोपकारक कर्म हो।।

 

मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफ़ाक़ अत्याचार से।

होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रुधिर की धार से।।

उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।

तब नाश होगा सर्वदा, दु:ख शोक के लवलेश का।।

 

सब से मेरा नमस्कार कहिए,

तुम्हारा

"बिस्मिल"

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित वन्दे मातरम के बाद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की रचना सरफरोशी की तमन्ना ही है जिसे गाते हुए न जाने कितने लोग फाँसी के तख्ते पर झूल गये। बिस्मिल ने यह रचना कालकोठरी में लिखी या गाई थी, उसका एक-एक शब्द आज भी जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना उन दिनों रखता था, इस रचना के हर शब्द आज भी बिस्मिल की ही तरह अमर है।

रचना के कुछ अंश:

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए-क़ातिल में है !

वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ ! हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है !

खीँच कर लाई है हमको क़त्ल होने की उम्म्मीद, आशिकों का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है !

ऐ शहीदे-मुल्के-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !

अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़, सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है !

और

दिन ख़ून के हमारे, यारों न भूल जाना

सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।

 

इन्कलाब ज़िंदाबाद

जय हिन्द !! जय भारत !!

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