राजीव गाँधी जी को तहे दिल से श्रद्धांजलि

 

अब नहीं लौट के आने वाला घर खुला छोड़ के जाने वाला.

 

बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया.

 

एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा.

 

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा.

 

जाने वाले कभी नहीं आते जाने वालों की याद आती है.

 

जिन्हें अब गर्दिश-ए-अफ़्लाक पैदा कर नहीं सकती कुछ ऐसी हस्तियाँ भी दफ़्न हैं गोर-ए-ग़रीबाँ में.

 

कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए.

 

लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं.

 

मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं.

 

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं.

 

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं.

 

उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए.

 

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं अब देखने को जिन के आँखें तरसतियाँ हैं.

 

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