राहत की कोई शाम न दो

मेरी तकलीफ को राहत की कोई शाम न दो मैं मुसीबत में पला हूँ मुझे आराम न दो

बोलना जब नहीं आता तो इशारा कैसा जब जबाँ चुप है तो नजरों से भी पैगाम न दो

क्या करोगे मुझे जब दागे जुदाई देकर जिन्दगी भर की मुहब्बत का यह ईनाम न दो

अब निकल आया हूँ मैं दैरो हरम से आगे दावते कुफ्र न दो, दावते इस्लाम न दो

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