रातों में जिन्द़गी कब सोती है

जुल्मों सितम की जब कभी इन्तहाँ होती है!  रोते हुए ख्यालों में आरजू भी रोती है!  हर घड़ी भटकती हैं मंजिलें वीरानों में,  दर्द की रातों में जिन्द़गी कब सोती है?

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