रात खिली है ओढ़े चादर

रात खिली है ओढ़े चादर, चाँद सितारे चले सफर पर। पलकोंपे तू सजी धजी है, तरसी अँखियाँ रात रातभर। कब तक जागूँ? कब आओगी? रूठी तनहाई.. कब बाँटोगी?  मुझे ज़रूरत उन ज़ुल्फ़ोंकी, जिनकी मख़मल सदा उजागर। कोहरा बैठा रंग ज़माने, जुगनू संग पेच लड़ाने। गिनूँ सितारे टिम टिम करते, खोए सपनोंका मैं सौदागर। अब तो आजा, सावन बरसा, रूहको मेरी और न तरसा। करवट बदल बदल मैं हारा,  निंदको प्यासा जागूँ रातभर।

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