रात का बसेरा बना है

मेरे वजूद की पर्तें भी एक-एक कर खुल रही हैं, दूर होना चाहता हूँ सबसे पर तू है; कि मुझ में घुल रही है

शाम के मुहाने पर जैसे रात का बसेरा बना है, मेरा जीवन-पथ वैसे ही तेरे होने की महक से सना है !

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