रात गुजरती खिड़की पर

रात गुजरती खिड़की पर बिस्तर पर बेबसी सोती है, आँखों में पलते सपनों की हर रोज़ ख़ुदकुशी होती है, बेसब्री आँखों से बहकर जख़्म विरह के धोती है, सन्नाटों में गुम ख़ामोशी हिचकी लेकर रोती है, उम्र कटी आँखों में जो बाकी साँसें भी गिनती है, उम्मीद तुम्हें पा लेने की अब भी धड़कन को थामें रहती है....

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