इंदिरा गांधी ने दिया था 1977 के चुनाव का आदेश : आर के धवन

नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किए जाने के पश्चात वर्ष 1977 में एक खुफिया रिपोर्ट में बहुमत मिलने का पूर्वानुमान की आशंका के कारण चुनाव का आदेश दिया था और चुनाव हारने के बाद राहत भी अनुभव की थी. यह जानकारी इंदिरा के करीबी सहायक रहे आरके धवन ने मंगलवार को दी. उन्होंने यह भी बताया कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे आपातकाल के शिल्पकार थे जिन्होंने इंदिरा गांधी पर देश में व्याप्त स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए कुछ सख्त कदम उठाने का दबाव बनाया था.

धवन ने बताया कि इंदिरा गांधी को ऐसा कभी नहीं लगा कि उनकी हार की वजह कभी भी संजय गांधी रहे थे. वह आपातकाल के समय अपने बेटे की गतिविधियों से अनभिज्ञ थी और इंदिरा के पास संजय के खिलाफ कोई शिकायत भी नहीं मिली थी. इंदिरा के पूर्व सहायक धवन ने  टीवी चैनल पर प्रसारित एक एक कार्यक्रम में बताया कि संजय को कुछ मुख्यमंत्री और नौकरशाह अपने अनुसार काम करवाते थे. संजय को यह कहा जाता की वे उनकी माँ  तुलना में अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली थे और  वह ज्यादा भीड़ खींचने में समर्थ थे. इस बात ने संजय के मन में जगह बना ली.

इंदिरा के निजी सचिव रहे धवन ने बताया कि इंदिरा रात का भोजन कर रही थीं उस समय मैंने उन्हें बताया कि वह चुनाव हार गई हैं. उनके चेहरे पर राहत दिखाई दे रही है. उनके चेहरे पर कोई पीड़ा या अफ़सोस के भाव नहीं दिखाई दिए. उन्होंने बोला था भगवान का शुक्र है, मेरे पास अपने लिए वक़्त  होगा. धवन ने मजबूती के साथ कहा कि इतिहास इंदिरा के साथ न्याय नहीं कर पाया और नेता निजी स्वार्थ के चलते उन्हें बदनाम करते हैं. उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रवादी थीं और अपने देश के लोगो से असीम प्रेम था.

धवन ने बताया उन्हें उस आइबी रिपोर्ट पर विश्वास था कि वह बहुमत से जीत हासिल करेंगी. पीएन धर ने उन्हें गुप्त ब्यूरो की एक रिपोर्ट दी थी जिसके तुरंत बाद उन्होंने चुनावों की घोषणा कर दी थी. यहां तक कि एसएस रे ने भी पूर्वानुमान जताया था कि इंदिरा को 340 सीटें से जीत मिलेंगी. धवन ने बताया कि रे ने आपातकाल के बहुत पहले इंदिरा को पत्र लिख कर कुछ कड़े महत्वपुर्ण कार्य करने की सलाह दी थी. उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल जारी करने के लिए उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने में कोई परेशानी  नहीं है.

धवन ने कहा कि जब इंदिरा ने जून 1975 में अपना चुनाव निरस्त किए जाने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश सुना था तो उनकी पहली प्रतिक्रिया त्याग पत्र देने की थी और उन्होंने अपना इस्तीफ़ा लिखवा लिया था. उन्होंने जानकरी दी कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं हुए. वजह थी उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने दबाव दिया कि उन्हें त्यागपत्र नहीं देना चाहिए. संजय की पत्नी मेनका गांधी के बारे में धवन ने बोला कि मेनका संजय के साथ हर उपस्तिथ रहती थीं इसलिए उन्हें  संजय द्वारा किये गए हर काम का पता था जो संजय ने उस दौरान किया था. मेनका अब भाजपा में हैं और केंद्रीय मंत्री हैं. धवन ने बताया कि मेनका गांधी को ज्ञात था कि संजय क्या कर रहे हैं. उन्हें सब कुछ पता था. उन्होंने कहा कि अब वह यह नहीं कह सकती की वह हर बात से अनजान थी.

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