पावन स्मरण -पर्यावरण को समर्पित अनिल माधव दवे

शख्स से शख्सियत बनना हर किसी के बूते की बात नहीं है. आज हम आपको देश की ऐसी ही एक शख्सियत के बारे में बताने जा रहे है जिनके रगों में माँ नर्मदा के प्रति असीम प्रेम और श्रद्धा बहती थी. केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अनिल माधव दवे अब हमारे बीच नहीं रहे. उनका स्वर्गवास 17 मई 2017 को गया. मगर उनका पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण और मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा. नर्मदा नदी संरक्षण कार्यों से दवे को एक अलग पहचान मिली थी. शायद दवे पहले ऐसे पर्यावरण मिनिस्टर रहे जो पद संभालने से पहले ही पर्यावरणविद् के रूप में विख्यात थे. नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए उन्होंने 2005 में नर्मदा समग्र संगठन बनाया था. उन्होंने एक नदी महोत्सव भी शुरू किया था.

उनका जन्म 6 जुलाई 1956 में उज्जैन के बड़नगर में हुआ था. उन्होंने इंदौर के गुजराती कॉलेज से एम कॉम किया था. वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक​ संघ से जुड़े थे. वह मध्य प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य थे, वे 2009 से ही राज्यसभा में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे. शायद कम लोगों को ही पता हो कि वह​ एक कामर्शियल पायलट भी थे. जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते का भारत की ओर से अनुमोदन किए जाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. प्रधानमंत्री की पयार्वरण से जुडी योजनाओं में वह एक प्रमुख नीतिकार और सलाहकार थे.

उन्होंने सृजन से विसर्जन तक, चन्द्रशेखर आजाद, सम्भल कर रहना घर में छुपे हुये गद्दारों से, शताब्दी के पांच काले पन्ने, नर्मदा समग्र, समग्र ग्राम विकास, अमरकंटर टू अमरकंटक और बियाण्ड कोपेंहगन पुस्तकें लिखी हैं. उनको केंद्र की मोदी सरकार में उन्होंने 5 जुलाई 2016 को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला था. 1999 के आम चुनाव में उमा भारती ने दवे को अपना मीडिया मैनेजर नियुक्त किया था, वह तब भोपाल से चुनावी मैदान में थीं. वह दवे के कार्यों से काफी प्रभावित थींं. जब 2003 में वह दिग्विजय सिंह के खिलाफ भाजपा की सीएम उम्मीदवार थीं तब उन्होंने दवे को अपना रणनीतिकार बनाया था. तब दवे ने चुनावी प्रचार में दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाधार की संज्ञा दी थी.

पर्यावरण मंत्री अनिल दवे की 4 अंतिम इच्छाएं (वसीयत) पढ़ेंगे तो भावुक हो जाएंगे आप-

यदि संभव हो तो नर्मदा नदी महोत्सव वाली जगह पर अंतिम सस्कार किया जाये. अंत्येष्टि में किसी तरह का दिखावा न हो, वैदिक कर्म ही हो. मेरी स्मृति में स्मारक, प्रतियोगिता, पुरस्कार, या प्रतिमा न लगाई जाये. अगर मेरी स्मृति में कुछ करना है तो पर्यावरण को बचाये. वृक्ष लगाए.

 

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