RSS ने विरोध प्रदर्शनों पर साधा निशाना, कहा- 'जन्मजात विषमता को हटाकर'...

गोरखपुर: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रांतीय सम्मेलन में  बीते शुक्रवार यानी 24 जनवरी 2020 को  सीएए और नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में होने वाले विरोध प्रदर्शनों पर निशाना लगाया जा रहा है. वहीं कहा गया कि जन्मजात विषमता को हटाकर समाज में समता और न्याय का वातावरण तैयार करना ही सामाजिक समरसता है. यह हर व्यक्ति के मन बदलने का कार्य है, न कि सभा, सम्मलेन, कार्यक्रम और विरोध का. समाज की विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखकर पिछले सात वर्षों से सामाजिक समरसता की मुहिम चल रही है. महिला-पुरुष की टोली देश के अलग-अलग खंडों में सामाजिक समरसता बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है. 

आरएसएस के 5 दिवसीय (23-27 जनवरी 2020) प्रांतीय सम्मेलन के दूसरे दिन बीते शुक्रवार के पहले सत्र का उद्घाटन सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने किया. जंहा गोरक्ष, काशी, कानपुर और अवध प्रांत के स्वयं सेवकों की मौजूदगी में सह सरकार्यवाह ने कहा कि संघ की टोली महिला, पुरुषों के व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में परिवर्तन का काम कर रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सामाजिक समरसता के निर्माण में जिन महापुरुषों का विशेष योगदान रहा है, उनके विचारों को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है. मंदिर, श्मशान और जलस्रोत सभी के लिए एक जैसा हो, ऐसा प्रयास करना है. समाज में परस्पर स्नेह, समता, सहयोग का वातावरण बनाने की दृष्टि से सामाजिक समरसता की मुहिम शानदार है. 

परिवार के साथ भजन और पड़ोसियों से मंगल संवाद का फायदा: जंहा यह भी कहा जा रहा है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के प्रांतीय सम्मेलन में सह सरकार्यवाह ने आदर्श परिवार पर  भी विचार रखे. उन्होंने कहा कि कुटुंब प्रबोधन के जरिए समाज में पारिवारिक आत्मीयता और देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव जागृत किया जाता है. परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें, यह सुनिश्चित किया जाता है. प्रतिदिन या सप्ताह में एक दिन भजन हो तो पारिवारिक प्रेम बढ़ेगा. महीने में पड़ोसियों से मंगल संवाद किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि जिन महिला या पुरुष सेवा कर्मियों की मदद से घर चलता है, उनके साथ स्नेह और संवाद अच्छा होना चाहिए. त्योहार सहित कोई भी मौका आए तो सेवा कर्मियों को सस्नेह बुलाया जाना चाहिए. नवदंपतियों में सहयोग, सहभागिता, सहनशीलता, संयम, चरित्र और जिम्मेदारी विकसित करना हमारा कर्तव्य है. घर, परिवार से आलस्य, गलत सामाजिक मान्यताएं, बौद्धिक जड़ता, भय, स्वार्थ और अहंकार त्यागने की मजबूत पहल होनी चाहिए.

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