नोट-बदली से पैदा समस्याएं दूर तो होंगी, पर कब और कैसे ?

इस लेख श्रृंखला के पहले लेख में हमने इसके 32 फायदों को जाना, जिनमें कुछ मिल चुके हैं, कुछ मिलने लगे है और कुछ दीर्घ अवधि में मिलते रहेंगे । श्रृंखला के दूसरे लेख में इसके अमल करने में सरकार से जो गलतियां हुई और उनसे जनता को होने वाले कष्टो की चर्चा की । अब इस तीसरे लेख का मुद्दा है कि जो तकलीफें पैदा हुई हैं, उनमें कौनसी कब तक रहेगी और कैसे दूर या कम हो सकती हैं ? हम जानते और मानते हैं कि इस सही कदम के अमल में गलतियां तो हुई हैं, जिनके कारण यह अच्छा कदम अधिक कष्टदायक हो गया । पर ध्यान रखिये, जैसे भी हो देश कष्ट सहकर भी सही दिशा में जा रहा है ।

सबसे पहले जो सबसे ज्यादा नजर आ रही थी, वह तकलीफ तो लाइन में खड़े रहने की थी, जो अब निश्चित ही कम होने लगी है और अगले 10-15 दिनों में लगभग ख़त्म हो जायेगी । फिर भी कुछ जुडी हुई अन्य समस्याएं रहेंगी जैसे नकदी की कमी को पूरा होने में छः माह से अधिक समय लग सकता है । बैंकिंग व व्यापार के लेनदेन को सामान्य होने में भी करीब इतना ही समय लग सकता हैं । परंतु, मेरी नजर में सबसे अधिक चिंतनीय समस्या दैनिक वेतन या अल्प वेतन पर काम करने वाले मजदूरों की हैं ।

सरकार यदि ध्यान देकर ऐसे ठोस उपाय करें कि छोटे उद्योगों में काम करने वाले और अन्य प्रकार के अकुशल मजदूरो को मजदूरी मिल सके और फैक्ट्री मालिक उस मजदूरी भुगतान व्यवस्था को काले को सफ़ेद करने का या कोई अन्य बेजा फायदा नहीं उठा पाए, तो इस समस्या को करीब एक माह में दूर किया जा सकता है । किन्तु यदि केंद्र व राज्य सरकारों ने जल्दी ही सही कदम नहीं उठाये तो यह समस्या भी लंबी खींच सकती है और इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं । जैसे औद्योगिक उत्पादन व विकास दर कम तो हो ही रही हैं और भी अधिक तेजी से गिर सकती हैं । मजदुर परिवारों में और अधिक भुखमरी हो सकती हैं तथा मजदूरों का असंतोष कहीं-कहीं उग्र रूप ले सकता हैं ।

दूसरा गंभीर मसला खेती का हैं । वैसे तो आशंका थी कि इससे रबी का रकबा घट सकता हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ, बल्कि इस बार रकबा बढ़ा हैं । परंतु अब किसानों को बुवाई के बाद के खर्चो के लिए भी पैसा चाहिए । इसलिए किसानों को उनके किसान क्रेडिट कार्ड से या अन्य तरह से खाद, दवा, सिंचाई आदि का पैसा जल्द सुलभ कराना होगा, नहीं तो अधिक बुवाई के बावजूद उत्पादन गिर सकता है । सबसे ज्यादा लंबी चलने वाली समस्या व्यापार-व्यवसाय में मंदी की रहेगी जो कि नकदी की किल्लत कम हो जाने के भी चार-छः माह बाद तक चल सकती है; यानि अगले वित्त-वर्ष 2017-18 में तो मंदी से राहत मिलना मुश्किल ही है । इससे महंगाई भले ही कम रहे, पर विकास की गति भी कमजोर ही रहेगी । मंदी से कम समय में उबरने के लिए सरकारें व बैंक्स कई कदम उठा सकते हैं:

सरकारों की भूमिका: सरकारें अपने विकास मूलक व अधो-संरचना के काम बहुत तेजी से चलाये । मनरेगा में मजदूरी के रूप में एवं समर्थन मूल्यों को बढाकर किसान-मजदूरो की जेबों में अधिक पैसा पहुंचाये । सूक्ष्म व लघु उद्योगों तथा छोटे व्यापारियों को करो से अधिकतम छूट दे या कई कर समाप्त करके एक ही कर लगाए तो उसकी दरे भी बहुत कम रखे । शिक्षा-स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा में भी निवेश को दुगुना-तिगुना करे, आदि उपाय आवश्यक हो गए हैं ।

बैंको की भूमिका: RBI ने ब्याज दरे कम नहीं की फिर भी आज की स्थिति में बैंक चाहे तो खुद ब्याज दरें कम करके अपनी सुधरी हुई आर्थिक स्थिति का अधिक लाभ निवेशकों व छोटे कर्ज चाहने वालों को दे सकती हैं । स्टार्ट-अप्स, सूक्ष्म, लघु, माध्यम उद्योगों को अधिकतम प्रोत्साहन दे सकती है एवं हाउसिंग लोन, एजुकेशनल लोन, वाहनों के लिए या अन्य सभी प्रकार के लोन भी पात्र लोगो को ढूंढ-ढूंढ कर बाँटना चाहिए । क्योंकि जो बड़ी मात्रा में पैसा बैंको में आ गया है उसका बड़ा भाग फिर लोगो के पास या बाजार में पहुँचाना जरुरी है तभी देश मंदी से उबार सकेगा । इसलिए अभी कई चुनौतियां व तकलीफे सहना बाकी है और सरकार व बैंकों को ही नहीं, सभी को अपनी-अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाना होगी; तभी अर्थ-व्यवस्था एक बड़े जरुरी व सार्थक आपरेशन के बाद पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर ईमानदारी आधारित व्यवस्था के युग में समग्रता से चल सकेगी ।

                                                                                                             हरिप्रकाश 'विसंत'

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