परिन्दे सा उड़ता रहा मेरा मन

परिन्दे सा उड़ता रहा मेरा मन, बचपन मेरा कँहा रह गया भूल कर दुनिया के सारे गम, इन्ही पलो को जिंदगी कह गया।

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