क्या कहते हैं RSS के सिद्धांत, सत्ता के लिए देश से समझौता

कांग्रेस मुक्त भारत का सपना लेकर आगे बढ़ी भारतीय जनता पार्टी की साख पर इन दिनों बट्टा लगता नज़र आ रहा है। एक ओर तो केंद्र सरकार देश भक्ति और राष्ट्रवाद की बात कर रही है वहीं जम्मू - कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन में बंधी भाजपा मुफ्ती सरकार की हां में हां मिलाने में लगी है। शायद भाजपा को भी नहीं पता होगा कि जम्मू - कश्मीर में सरकार बनाने की उसे इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। 
एक ओर सरकार को मुफ्ती के बड़बोलेपन का सामना करना पड़ा तो दूसरा अलगाववादी नेताओं मसरत आलम को पहले तो छोड़ दिया गया फिर बाद में नज़रबंद कर दिया गया। लोगों को सरकार के इस फैसले पर यकी नहीं हुआ। लोग सोचने लगे कि क्या उन्होंने उसी भाजपा को केंद्र में स्थापित करने के लिए वोट दिया जिसके प्राण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा किए गए शंखनाद से जागृत होते हैं। क्या उन्होंने उसी भाजपा को वोट दिया जिसके नेता हरदम वंदेमातरम् के वर्षों पुराने जयघोष को जिंदा रखे हुए हैं।
अलगाववादियों द्वारा लगातार पाकिस्तान का समर्थन किए जाने और कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताने के बाद भी इन्हें देशद्रोही नहीं कहा गया। सरकारी नुमाईंदे इन्हें नज़रबंद कर जैसे संरक्षण देते रहे। पोटा की बात करने वाली भाजपा खुद ही आतंकियों का समर्थन करने और भारत के मोस्टवांटेड आतंकी में से एक हाफिज सईद का नारा दोहराने वाले अलगाववादी मसरत आलम के सामने नतमस्तक नज़र आई। अब तक जो देशवासी प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रभक्त मान रहा था वही जम्मू -कश्मीर की गठबंधन सरकार और केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के फैसलों से आश्चर्य में पड़ गया।

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