इलेक्शन के इस दौर में पॉलिटिकल शायरियां

1. मैं अपनी आँख पर चशमाँ चढ़ा कर देखता हूँ, हुनर ज़ितना हैं सारा आजमा कर देखता हूँ, नजर उतना ही आता हैं की ज़ितना वो दिखाता है, मैं छोटा हू मगर हर बार कद अपना बढ़ा कर देखता हूँ.

 

2. ये जो हालत हैं ये सब तो सुधर जायेंगे, पर कई लोग निगाहों से उतर जायेंगे.

 

3. मुझको ताजीम की सीख देने वाले, मैंने तेरे मुँह में कई जुबान देखा है, और तू इतना दिखावा भी ना कर अपनी झूठी ईमानदारी का, मैंने कुछ कहने से पहले अपने गिरेबां में देखा है.

 

4. सियासत की रंगत में ना डूबो इतना, कि वीरों की शहादत भी नजर ना आए, जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को, गर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आए.

 

5. न मस्जिद को जानते हैं, न शिवालो को जानते हैं, जो भूखे पेट हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं.

 

6. क्या खोया, क्या पाया जग में, मिलते और बिछुड़ते मग में, मुझे किसी से नही शिकायत, यद्यपि छला गया पग-पग में.

 

7. सवाल जहर का नहीं था, वो तो मैं पी गया, तकलीफ लोगों को तब हुई, जब मैं फिर भी जी गया.

 

8. जहाँ सच हैं, वहाँ पर हम खड़े हैं, इसी खातिर आँखों में गड़े हैं.

 

9. नजर वाले को हिन्दू और मुसलमान दिखता हैं, मैं अन्धा हूँ साहब, मुझे तो हर शख्स में इंसान दिखता हैं.

 

10. हमारी रहनुमाओ में भला इतना गुमां कैसे, हमारे जागने से, नींद में उनकी खलल कैसे.

 

11. इस नदी की धार में ठंडी हवा तो आती हैं, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो हैं.

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