छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था, एक नाई, एक मोची, एक काला लुहार था. छोटे छोटे घर थे, पर हर आदमी बङा दिलदार था, छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था । कही भी रोटी खा लेते, हर घर मे भोजऩ तैयार था, बड़ी की सब्जी मजे से खाते थे, जिसके आगे शाही पनीर बेकार था.. छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था। दो मिऩट की मैगी ना, झटपट दलिया तैयार था, नीम की निम्बोली और शहतूत सदाबहार था. अपना घड़ा कस के बजा लेते, समझो पूरा संगीतकार था, छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था। मुल्तानी माटी से तालाब में नहा लेते, साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था, और फिर कबड्डी खेल लेते, हमे कहाँ क्रिकेट का खुमार था, छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था। दादी की कहानी सुन लेते, कहाँ टेलीविज़न और अखबार था, भाई - भाई को देख के खुश था, सब मे बहुत प्यार था, छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था। वो प्यार, वो संस्कृति मैं अब कहाँ से लाऊं, ये सोच सोच कर ही, मैं बहुत दुख पाऊं। जो वो समय फिर आ जाये तो बहुत मजा पाऊं, मैं अपनी असली जिन्दगी जी पाऊं, और मैं इस धरती को सौ-सौ शीश झुकाऊं। वो छोटा सा एक गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था।