ज़ाकिर भाई की सख्ती को सलाम . . .

1. तुझे खोने का खौफ जबसे निकला है बाहर, तुझे पाने की जिद भी टिक न सकी दिल में…

2. वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी।

3. माना की तुमको भी इश्क़ का तजुर्बा कम् नहीं, हमने भी तो बागो में है कई तितलियाँ उड़ाई…

4. इश्क़ को मासूम रहने दो , नोटबुक के आखरी पन्ने पर, आप उससे किताबों में डाल के मुश्किल न कीजिये…

5. ज़िन्दगी से कुछ ज्यादा नहीं बास इतनी सी फरमाइश है , अब तस्वीर से नहीं, तफ्सील से मिलने की ख्वाइश है…

6. कामयाबी, तेरे लिए हमने खुदको को कुछ यूँ तैयार कर लिया, मैंने हर जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया…

7. अब वो आग नहीं रही, न शोलो जैसा दहकता हूँ, रंग भी सब के जैसा है, सबसे ही तो महेकता हूँ… एक आरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में, तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ…

 

8. बस का इंतज़ार करते हुए, मेट्रो में खड़े खड़े रिक्शा में बैठे हुए गहरे शुन्य में क्या देखते रहते हो? गुम्म सा चेहरा लिए क्या सोचते हो? क्या खोया और क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी? घर नहीं जा पाए न इस बार भी?

राहत इंदौरी साहब की कलम से

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