जी हां। सब कुछ बिकता है यहाँ

सब कुछ बिकता है यहाँ . जी हां। सब कुछ बिकता है यहाँ. भाषा से लगाकर भेष तक. गांव से लगाकर देश तक. जिस्म से लगाकर रूह तक . इंसानियत के नूर तक. प्यार की एक चाह तक. दर्दभरी आह तक. जन्म से स्वाह तक . अनकही सी राह तक  सड़कों से गलियो तक. चाहत की रंगरलियों तक. फूलों की कलियों तक. इंसानो की बलीयों तक. गरीबी से गरीब तक. रकीब से हबीब तक. मन्नतो की कशिश तक. इंसान के नसीब तक . बहन से लगाकर भाई तक. हिन्दू से ईसाई तक. पत्नी से शहनाई तक. दुआ से हाय तक. बूढ़े से बच्चे तक . झूठे से फिर सच्चे तक  पक्के से कच्चे तक . बुरे से अच्छे तक . थाने से वकील तक . चौराहे से जेल तक . पुलिस से जेलर तक . चोर से ब्लैकमेलर तक . सोने से सपनो तक . परायो से अपनों तक. बिस्तर से नींद तक . सुबह की उम्मीद तक . सजी हुई शाम तक . महफ़िल के जाम तक . मतदाता से मंत्री तक . लोकायुक्त से यंत्री तक . तंत्र से फिर तंत्री तक . नेताओ के संत्री तक. मंदिर से मस्जिद तक . भगवान की मूर्ति तक . प्रार्थना से प्रसाद तक . सांप्रदायिक फसाद तक . सब कुछ बिकता है यहाँ .

                                                                                                             कवि - बलराम सिंह राजपूत

 

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