रमज़ान का चाँद मुबारक

 

आसमान और ज़मीं का है तफ़ावुत हर-चंद, ऐ सनम दूर ही से चाँद सा मुखड़ा दिखला.

ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए, इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए.

चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है, अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है.

चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है, चाँद पर चाँदनी नहीं होती.

चाँद ख़ामोश जा रहा था कहीं, हम ने भी उस से कोई बात न की.

चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे, आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया.

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है, चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है.

देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल, वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है.

दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में, ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला.

इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताब, इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा.

इतने घने बादल के पीछे, कितना तन्हा होगा चाँद.

कई चाँद थे सर-ए-आसमाँ कि चमक चमक के पलट गए, न लहू मिरे ही जिगर में था न तुम्हारी ज़ुल्फ़ सियाह थी.

कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए, तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए.

मुझसे मत कर यार कुछ गुफ्तार, मै रोज़े से हूँ

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