नज़र आता है राष्ट्रीय सद्भाव का अभाव

नरेंद्र प्रतिदिन घर से दफ्तर के लिए जाता है। अक्सर रास्ते में पड़ने वाले चौराहे पर रेड सिग्नल में रूकना उसे अच्छा नहीं लगता। ऐसा करना वह अपनी शान के खिलाफ समझता है। उसे लगता है कि चौराहे पर रूकना किसी बेवकूफी से कम नहीं है। 40 वर्ष के विश्वनाथ ड्राईविंग के दौरान रेड सिग्नल आने पर जेबरा क्राॅसिंग पर ही वाहन लेकर खड़े हो जाते हैं। तो बहुत दूर से ज्योर्तिलिंग के दर्शनों के लिए आए मंदार कतार तोड़ते हुए आगे पहुंच गए। ऐसे में मंदिर में अव्यवस्था होने लगी।

ये तमाम उदाहरण हमारे दैनिक जीवन से ही जुड़े हुए हैं। इन उदाहरणों में हमें यह ज्ञात होता है कि हम अपने लाभ के लिए पूरे तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं। हम अपने देश की स्वाधीनता के 68 वें बसंत में तो पहुंच गए हैं लेकिन हमें आज भी आज़ादी चाहिए। वह भी अपनी ही शर्तों पर फिर इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि पूरे तंत्र पर या और लोगों पर इसका क्या असर हो रहा है। अब तो लोग देशप्रेम की बातें करना एक राजनीतिक फितूर ही समझते हैं लोगों का मानना है कि यह एक पोलिटिकल मैटर है।

हालात ये हैं कि अब बच्चे रंग दे बसंती चोला की जगह रंग देनी रंग देनी जैसे गीत गाते हुए नज़र आते हैं। ऐसे में बच्चों में न तो एक अच्छा आदर्श विकसित होता है और न ही उनमें देशप्रेम की भावना जागृत हो रही है। अब वे हमारी स्वतंत्रता का आधार रखने वाले नायकों को भूलते जा रहे हैं। हालात ये हैं कि देश की यह पीढि़ महामना पं. मदन मोहन मालवीय को नहीं जानती। बच्चों को यह पता होता है कि अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय के बीच खटपट की वजह क्या है लेकिन वे इन पचड़ों में नहीं पड़ना चाहते कि दोनों ही सिने कलाकारों द्वारा अभिनीत फिल्म गुरू बिजनेस आयकन बने धीरूभाई अंबानी के जीवन से प्रेरित होकर बनाई गई या नहीं।

धीरूभाई अंबानी ने कितने संघर्षों के बाद सफलता प्राप्त की। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तो उनके लिए स्वाधीनता दिवस केवल नई रीलिज़ मूवी देखने और पिज्ज़ा हट में मौज . मस्ती करने तक ही सीमित है। उन्हें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश को क्या उद्बोधन दिया। देश भक्ति और देशप्रेम को आज के समय में एक बोरिंग टाॅपिक मान लिया गया है लेकिन इस तरह की सोच रखने वाले ये युवा नहीं समझ पा रहे हैं कि बहुभाषी और अनेक विविधताओं में रचा बसा इस देश का इतिहास ऐसा रहा है जिसमें कई आक्रमणकारियों ने इसे हर बार तोड़ने के प्रयास किए और आज भी आतंकवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद के नाम पर इसे तोड़ने के प्रयास हो रहे हैं।

इन सभी से बचने के लिए राष्ट्रीय सद्भाव की भावना होना बेहद आवश्यक है। तो दूसरी ओर 1 अरब से भी अधिक आबादी वाले इस देश में आपस में मिलजुलकर रहना और अपने कर्तव्यों को अधिकारों की तरह ही महत्व देना बहुत जरूरी है। हालात ये हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को केवल एक प्रचार कैंपेन के तौर पर लोगों द्वारा अपनाया जा रहा है। जब भी लोगों को अखबार में फोटो खिंचवाने होते हैं या अपना प्रचार करना होता है लोग झाड़ू लेकर खड़े हो जाते हैं लेकिन बाद में वे ही लोग बसों में से सड़क पर केले के छिलके और चिप्स के रैपर्स फैंकते हैं तो बस स्टेंड पर गंदगी करते हैं। लोगों में अधिकारों के साथ कर्तव्यों को पूरा करने की भावना विकसित होना बहुत जरूरी है। इसके लिए लोगों में राष्ट्रीय सद्भाव का अलख जगाने की आवश्यकता है। राष्ट्र प्रेम और सिद्धांतों के बल पर इसे विकसित किया जा सकता है।

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