परोपकारी अत्याचार नहीं करते

अरब का एक बादशाह शिकार का बड़ा शौकीन था। राजकार्य से जब भी अवकाश मिलता, वह मंत्री, सेनापति और सिपाहियों को लेकर शिकार पर निकल जाता। बादशाह ने अपने महल की दीवारों को मारे गए जानवरों की खालों से सजा रखा था। जब भी उसके राज्य में कोई अतिथि आता, वह सगर्व इन खालों का दर्शन उसे कराता और अपनी शिकार संबंधी उपलब्धियों को बताता।

एक बार बादशाह शिकार करने गया तो खूब भटकने के बाद भी शिकार नहीं मिला। वह और उसका पूरा काफिला थक गया। शाम को जब बादशाह खाली हाथ लौट रहा था तो उसे एक हिरनी और उसका बच्चा घास चरते हुए दिखाई दिए। बादशाह को यकायक जाने क्या सूझा कि उसने तीर चलाने के स्थान पर चुपचाप हिरनी के बच्चे को पकड़ लिया और महल की ओर लौटने लगा। कुछ देर बाद उसने पीछे मुड़कर देखा कि हिरनी भी उसके पीछे-पीछे आंखों में आंसू लिए चली आ रही है। यह देखकर बादशाह का दिल पिघल गया और उसने हिरनी के बच्चे को छोड़ दिया। हिरनी अपने बच्चे को पाकर खुशी से उसे चाटने लगी और बादशाह को कृतज्ञता भरी दृष्टि से उनके ओझल होने तक देखती रही।

बादशाह को महसूस हुआ कि उन्होंने हाथ आया शिकार भले ही खो दिया हो, लेकिन बदले में एक ऐसी गहरी आत्मसंतुष्टि पा ली है, जो हिरनी के बच्चे का वध करके कभी नहीं मिलती। सार यह है कि जीवन देने में जो सुख है, वह लेने में कदापि नहीं, क्योकि लेकर हम स्वार्थी सिद्ध होते हैं और देकर परोपकारी।

अरब का एक बादशाह शिकार का बड़ा शौकीन था। राजकार्य से जब भी अवकाश मिलता, वह मंत्री, सेनापति और सिपाहियों को लेकर शिकार पर निकल जाता। बादशाह ने अपने महल की दीवारों को मारे गए जानवरों की खालों से सजा रखा था। जब भी उसके राज्य में कोई अतिथि आता, वह सगर्व इन खालों का दर्शन उसे कराता और अपनी शिकार संबंधी उपलब्धियों को बताता।

एक बार बादशाह शिकार करने गया तो खूब भटकने के बाद भी शिकार नहीं मिला। वह और उसका पूरा काफिला थक गया। शाम को जब बादशाह खाली हाथ लौट रहा था तो उसे एक हिरनी और उसका बच्चा घास चरते हुए दिखाई दिए। बादशाह को यकायक जाने क्या सूझा कि उसने तीर चलाने के स्थान पर चुपचाप हिरनी के बच्चे को पकड़ लिया और महल की ओर लौटने लगा। कुछ देर बाद उसने पीछे मुड़कर देखा कि हिरनी भी उसके पीछे-पीछे आंखों में आंसू लिए चली आ रही है। यह देखकर बादशाह का दिल पिघल गया और उसने हिरनी के बच्चे को छोड़ दिया। हिरनी अपने बच्चे को पाकर खुशी से उसे चाटने लगी और बादशाह को कृतज्ञता भरी दृष्टि से उनके ओझल होने तक देखती रही।

बादशाह को महसूस हुआ कि उन्होंने हाथ आया शिकार भले ही खो दिया हो, लेकिन बदले में एक ऐसी गहरी आत्मसंतुष्टि पा ली है, जो हिरनी के बच्चे का वध करके कभी नहीं मिलती। सार यह है कि जीवन देने में जो सुख है, वह लेने में कदापि नहीं, क्योकि लेकर हम स्वार्थी सिद्ध होते हैं और देकर परोपकारी।

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