पलकों में समाये ये रहते हैं

अँखियों की पलकों में  समाये ये रहते हैं मन में छिपी बातों को हमसे ये कहते हैं कुछ स्याह कुछ इंद्रधनुष से रंगीन ये ख्वाब। नींद में कितने अपने से  बन जाते हैं ये खुल जायें जो आँखें पल में हो जाते हैं पराये ये कुछ पाकर कुछ हाथों से  ओझल ये ख्वाब। ख्वाबों में जीना अक्सर  जरूरी होता है समझकर उन्हें पाना मुश्किल होता है दिखाते हैं अरमानों को मंजिल ये ख्वाब। ख्वाबों पर अपना हर पल निर्भर ना हो अक्स छोड़ परछाई दिखाये "प्राची" ऐसा दर्पण ना हो  कुछ खिलते कुछ बोझिल से ये ख्वाब।

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