यादो का झोंका नींदे छेड़ जाता है पलके जो मूंद लु तो तू चला आता है सुबह को दर्द की शिकन नहीं माथे पर चाहे तू मुझे रात भर तड़पाता है तेरे जाते ही मैं तो कब का मर चूका ये कौन है जो मेरी देह चलाता है खींचतान चलती है मेरी समंदर से मैं पानी पर लिखता हु वो मिटाता है बेवजह नहीं होती कश्मकश जिंदगी में