पाकर के भी खुद को में पाती नहीं

एक आग लगी है रूह-ओ-जिस्म में 

बारिश भी ये अगन बुझाती नहीं 

किस अनजान राह पर छोड गए हो 

पा के भी खुद को में पाती नहीं 

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