स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ 'प्रिविलेज मोशन' लाने की तैयारी में विपक्ष, जानिए क्या होता है ये प्रस्ताव ?

नई दिल्ली: भारत के लोकतंत्र में संसद के सदस्यों को जो विशेषाधिकार दिए गए हैं, वो उन्हें अपने कर्तव्यों को उचित तरीके से निभाने के लिए बाध्य करते हैं. अगर कोई भी सदस्य विशेषाधिकारों या अधिकारों की अवहेलना या गलत इस्तेमाल करता है, तो इसे विशेषाधिकार प्रस्ताव (privilege motion) का उल्लंघन माना जाता है. यह प्रस्ताव संसद के लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों पर लागू होता है. संसदीय कानूनों के तहत विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव दंडनीय है. 

लोकसभा में इस प्रस्ताव का उल्लंघन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा देखा जाता है और राज्यसभा में सभापति द्वारा इसे देखते हैं. बता दें कि भारत की संसदीय प्रणाली में बहुमत का शासन होता है, किन्तु अल्पमत में रहने वाली पार्टियों के सदस्यों को भी जनता ही चुनकर भेजती है. उनका मुख्य कार्य संसद के अंदर सरकार को जवाबदेह बनाए रखने का होता है. सदन की जवाबदेही प्रत्यक्ष रूप से आम जनता के प्रति होती है, जिसकी निगरानी विरोधी पार्टी के सदस्य करते हैं. सदन के अंदर किसी भी सदस्य को अपनी बात खुलकर कहने का पूरा अधिकार रहता है और किसी भी बयान को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. सदन के भीतर सभापति की नज़र में पीएम और संसद के अन्य सदस्यों के बीच अधिकारों का कोई भेद नहीं रहता है. 

संविधान की धारा 105 के मुताबिक, विशेषाधिकार के उल्लंघन की जांच की जाती है, जबकि राज्य विधायिका के मामले में अनुच्छेद 194 के मुताबिक, प्रस्ताव पारित किया जाता है. नियमों के अनुसार, नोटिस हाल की घटना से संबंधित होना चाहिए. इसके लिए सदन का हस्तक्षेप भी जरुरी है. अध्यक्ष की सहमति के बाद सदस्य विशेषाधिकार हनन या सदन की अवमानना ​​के प्रस्ताव पर सवाल उठा सकते हैं.  

क्यों लाया जा रहा ये प्रस्ताव?

दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा 'ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं', वाले बयान के कारण इस प्रस्ताव का जिक्र हुआ है. इसको लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं. मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्रालय ने उच्च सदन में बताया था कि दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की किल्लत से किसी की मौत की जानकारी राज्यों ने नहीं दी है. इसी लिखित कथन को लेकर विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की कवायद चल रही है. 

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