23 साल जेल में, साबित हुआ निर्दोष, कहा: मेरी जिदंगी कौन लौटाएगा ?

जयपुर : बिना किसी गलती के 23 वर्षो तक जेल में रहना किस कदर कष्टदायी रहा होगा, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। कर्नाटक के गुलबर्ग के रहने वाले निसार को बाबरी विध्वंस के शहादत की पहली बरसी पर हुए ट्रेन बम धमाके के सिलसिले में पकड़ा गया था। इस धमाके में दो यात्रियों की मौत हो गई थी व 8 घायल हो गए थे।

15 जनवरी 1994 को गिरफ्तार किए गए निसार उद दीन अहमद को 17 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर की जेल से रिहा कर दिया। उनके साथ अन्य दो युवकों को भी रिहा किया गया। निसार ने बताया कि जब उन्हें जेल में डाला गया था, तब उनकी उम्र 20 साल थी। वह तब फार्मेसी सेकेंड ईयर में पढ़ते थे। निसार ने बताया 15 दिन बाद एक एग्‍जाम होना था। मैं कॉलेज जा रहा था। पुलिस की गाड़ी इंतजार कर रही थी। तभी एक आदमी ने बंदूक दिखाया और जबरन गाड़ी में बिठा लिया। टीम हैदराबाद से आई थी। बाद में नसीर के भाई को भी गिरफ्ताऱ किया गया।

उसे भी उम्र कैद की सजा दी गई, लेकिन बाद में स्वास्थय कारणों से उसे रिहा कर दिया गया। नसीर ने बताया कि मैंने अपनी जिंदगी के 8,150 दिन जेल में बिताए, मेरे लिए जिंदगी खत्म हो गई, अब मैं केवल एक लाश हूं। मैं 20 साल का होने वाला था, जब उन्‍होंने मुझे जेल में डाल दिया। अब मैं 43 साल का हूं।

आखिरी बार जब मैंने अपनी छोटी बहन को देखा था तब वह 12 साल की थी, अब उसकी 12 साल की एक बेटी है। मेरी भांजी तब सिर्फ एक साल की थी, उसकी शादी हो चुकी है। मेरी कजिन मुझसे दो साल छोटी थी, अब वह दादी बन चुकी है। पूरी एक पीढ़ी मेरी जिंदगी से गायब हो चुकी है। रिहाई के लिए नसीर ने कोर्ट का धन्यवाद तो किया है, लेकिन उन्होने पूछा भी है कि उनकी जिंदगी उन्हें कौन लौटाएगा।

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