अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला, हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला. अब किसी से भी शिकायत न रही, जाने किस किस से गिला था पहले. अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए, शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी. अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं, रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं. एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा, जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला. एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक, जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा. ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है, जिस जगह रहिए वहाँ मिलते-मिलाते रहिए. ग़म हो कि ख़ुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं, फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है. घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए. गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया, होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया. इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी, रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही. इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे, रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा. कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता. खून के रिश्तों में शादियाँ कहाँ होती हैं.... लड़कियां 'सुल्ताना डाकू' कब बनने लगती हैं, जानें प्यारे लोगों के लिए प्यार भरी शायरियां