नज़र क्यों खफा हो गई

तुम्हारी नज़र क्यों खफा हो गई ख़ता बख़्श दो गर ख़ता हो गई  हमारा इरादा तो कुछ भी ना था तुम्हारी ख़ता खुद सज़ा हो गई

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