साइंटिफिक एनालिसिस भारत की संसद पर होगा

हम उसी संसद की बात कर रहे है जिसमे बैठने वोलो को किसी विदेशी ने माइंडलेस चि$%@#$ कह दिया तो मीडिया में भूचाल ला दिया | इसकी फोटो के ऊपर इसके अंदर के लोगो की सोच के प्रतिक के रूप में ऊपर एक भगवान के बनाये जानवर की फोटो को लगा दी तो कुछ ही घंटो में उनके इसकी ताकत का अहसास तो क्या स्वाद चखा दिया | आजकल इसे "लोकतंत्र का मंदिर" से महिमा मंडित करके सस्टांग प्रणाम किया जा रहा है व राष्ट्रीय सम्बधानो में आने वाली नई पीढ़ी को ऐसा अनुसरण करने की सलाह / उपदेश / सिख दी जा रही है और उसे सविधान के आधार पर न्यायोचित ठहराया जा रहा है | हम तो ज्यादा समझदार नहीं है इसलिए लोग "पाचवी फैल" कहते है परन्तु हमें इतना नॉलेज जरूर है की पिछले कई वर्षो से देश की नई पीढ़ी, अभी की युवा व प्रोढ की सीमा में जाने की दहलीज पर खड़े सभी देश वासियो को जबरदस्त तरीके से शिक्षा, प्रचार, आंदोलनों, भाषणो, रैलियों आदि से घोट घोट कर रटवा डाला की "महात्मा गांधी" राष्ट्रपिता है जबकि सविधान में ऐसा कुछ नहीं लिखा है अब "मंदिर" का पता नहीं इसे कौन से पन्ने व किस लाइन में लिखा है | 

हमें तो सिर्फ पाचवी पास का प्रमाण पत्र चाहिए, इतिहास तो हमें याद रहता नहीं और सास बहु वाले मसालेदार सीरियल जिसमे आसानी से एक आदमी को 3-4 नई नई पत्निया मिल जाती है व इंसानी अंगो को अलग अलग कोण, नजरिये व छेदो से देखने की हमारी आदत से टी.वी. से फुरसत ही नहीं मिल पाती इस कारण किताबे पढ़कर इतिहास के बारे में नॉलेज नहीं बढ़ा सकते है परन्तु आप हमारी बुद्धि और याददास्त पर अंगुली नहीं उठा सकते है क्यों की हमें अच्छी तरह याद है की कौनसे हीरो और हीरोइन ने मात्र मनोरंजन के लिए बनी फिल्मो में क्या खाया, पिया, पहना, नहीं पहना, बोला, तोडा व फाड़ा है | इसलिए यदि किसी राष्ट्रीय स्तर के बड़े प्रोग्राम में फ़ोन लग जाये तो आपको करोड़पति बनकर बता सकते है | हमारी सोच का कमाल देखो हमें आज भी याद है की शिर्डी के साईं बाबा पूरी जिंदगी टूटी हुई मज्जिद में रहे और जीवन भर सोये | आज उनके मरने के बाद चाँदी के सिहासन, सोने के मुकुट, दीवारो पर सोने चाँदी के खोल चढ़ गए पता नहीं किसके लिए और क्यों? क्या यही सिद्धांत जिसका अनुसरण करके संसद भवन को मंदिर की उपमा दी जा रही है | राजनीती तो हमारी मोटी बुद्धि में आती नहीं किसी ने बताया की साम, दाम, दंड, भेद के बाद भगवान बनाने का ब्रह्मास्त प्रयोग में आता है | 

हमें मंदिर के नाम से कम उसके चलाने वालो से नजर मिलाने पर भी डर लगता है पता नहीं कब, किस बात पर चंदा मांग ले या मंदिर में बैठे भगवान का डर दिखा कर हजारो लाखो रुपये की रसीद हाथ में पकड़ा दे | अब नये मंदिर का चंदा कौन कौन मांगेगा, कुछ लोगो का कहना है की पांच साल में एक बार मांगने का रिवाज जारी है परन्तु अब मशीन से नोट गिन जाने के कारन बेकार और बेरोजगार रहते है इसलिए अधिक मेहनत व काम करने की योजना बनाई है | इसकी ताकत अपरम्पार और इसकी ताकत की आत्मा सविधान की बात ही निराली है | यदि यहाँ किसी कंपनी के उत्पाद का नाम कोई दूसरा इस्तेमाल कर ले तो सविधान के कानून के तहत उसे करोडो के दंड के साथ जेल की हवा भी खानी पद जाती है परन्तु संसद, सविधान के नाम का क्या ? कोई भी हमारी पार्टी का सविधान, हमारे जात की संसद, इसके पंचायत आदि मूल शब्दों का इस्तेमाल करता है परन्तु कुछ होता नहीं आखिर कॉपीराइट कानून संसद, सविधान और अब मंदिर से बड़ा कैसे हो सकता है | 

हमें रोज सुबह अखबार की पहली लाइन व शाम के प्राइम टाइम में यह बताया जाता है की मंदिर में यदि गलत आदमी (इसकी परिभाषा तय नहीं) , दुष्ट, अन्नयायी, अपराधी, पापी चला जाये तो उसे गंगा जल (फिल्मी वाला नहीं), गुलाब जल आदि से धोने की आदत है | अब धर्म संकट यह हो गया की अब संसद को मंदिर बनाने पर इसे हर पल किससे व किसे धोएंगे क्यों की इसके आधे लोग शेष को दोषी, अपराधी, गलत सोच व समस्याओं के मूल कारक बताते है शेष आधे पहले वालो को | जबकि सविधान के पन्ने हवा में पलट पलट कर कानून के माध्यम से इसमे बैठे लोगो में से कइयों के नाम बाहुबली, बलात्कारी, घोटालेबाज, हत्यारा, धोखेबाज बताती है | हम तहे दिल से इस संसद के मालिकाना हक़ वाली आम जनता के शुक्रवार और शनिवार है जो समय की चाल को समझकर गंगा जल की सफाई व झाड़ू के माध्यम से स्वछता अभियान में अग्रसर है | हम तो गंगा मैय्या और उसके अन्य नदी बहनो से घबराहट हो रही है जो आजकल स्वयं लोगो के घर जाकर पाप धोने में विश्वाश करने लगी है आख़िरकार दूसरे मंदिरो में विराजमान भगवानो का काम जो कम करना है ताकि उनकी अनुकम्पा व दया दृस्टि बनी रह सके |

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