उनकी नज़रों के मुताबिक नज़र अाएँ हम, किस तरह गैर के साँचे में ढल जाएँ हम..!! हमें एक मुद्दत लगी है खुद को बनाने में, क्यों बेवजह औरों के लिए बदल जाएँ हम..!! ज़मीनी हैं हम पाँव ज़मीन पर जमें हैं, तेरे संगमरमर पर कैसे फिसल जाँए हम..!! हो यूँ कि तेरी बेबसी और बदलता वक्त मेरा, और करीब से मुस्कुराकर निकल जाएँ हम..!!