मुश्किलें बहुतेरी हैं जीने में

तकरीबन एक सरी की होती हैं हर शहर की सड़कें उन पर चलने वाली गाड़ियां कुछ दुपहिया और कुछ चार-पहिया

सड़कों के सीने पर लगे रंग-बिरंगे सिग्नल के खम्बे कहीं आसपास खड़े बतियाते खाकी-वाले चालान बनाते या ले-देकर मामला निपटाते

कोने में रखी चाय-पान की गुमटी नौजवानों से घिरी हुयी है जो दिखती है धुएँ में कुछ उड़ाने की बेसब्री शायद परेशानियां या फिर ज़िन्दगी को

पेट्रोल-पम्प की पर लगी लम्बी कतारें दिन-ब-दिन बढ़ती ही जाती हैं और कुछ भरमा सा जाता हूँ सोचकर कहीं सस्ता तो नहीं हो गया

सुबह-सवेरे मुश्किल है अखबार को उठाना जैसे थाम रखा हो 'शेष' ने धरा को जाने महंगाई कौन सा नया कीर्तिमान रच दे सोचते ही आने लगता है कलेजा मुंह को

मुश्किलें बहुतेरी हैं जीने में लेकिन शहर तो वही अपना 'पुराने यार' सा है यहीं से चलना यहीं पर आकर थमना दिन से रात तक इसी की गोद में मचलना है

बड़े-बूढों सी थपकियाँ देकर सिखाया है तो कभी 'माँ' की तरह गोद में झुलाया है जब भी कभी मायूस हुआ हूँ; इसने  किसी प्रेमिका की तरह बाहों में छुपाया है

हर एक रिश्ता बेहतरीन पाया है जब-जब यूँ ही हाथ में कोई हाथ आया है बड़ी मुहब्बत है अपने इस शहर से मुझे रुलाया बहुत है; पर इसी ने तो हंसाया है !

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