माँ

माँ

हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते  हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं  हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह  सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’ रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते  सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं  मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है  मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना  भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े  लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती  तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा.

-मुनव्वर राना

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