मुझे तारीख पे तारीख दे देना

पडा बेचैन दिल मेरा अजब सी इक हरारत में मोहब्बत जुर्म है मेरा उनके दिल की अदालत में । है कानून भी अंधा मोहब्बत भी तो अंधी है वकील जज्बात है मेरे सिफ़र हैं जो वकालत में ॥

बिना सोचे बिना समझे फैसला तुम नहीं करना तुम अपने हृदय को भी कटघरे में खडा करना । मेरे ही पक्ष में देगा तेरा दिल भी गवाही तो बस तुम निष्पक्ष होकर के बयानों को दर्ज करना ॥

जो इस जुर्म की होती मुकम्मल वो सजा करना सजा-ए-मौत दे देना उम्र भर कैद या करना । मुझे तारीख पे तारीख दे देना भले कितनी पर इस जुर्म से हमको बरी बिल्कुल नहीं करना ॥

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