वही तो है मेरी प्यारी मॉ

शब्दो मे जो बँध न सका,  पीड़ा मे जो सँध न सका,  भावो की उन्मुक्तता मे , ममता हेतु  उड़ न सका । वही तो है मेरी प्यारी मॉ।

धरती जितना देती है,  उससे न कमतर  होती है  उसके अंचल मे समाकर,  ऑसू जब पीड़ा धोती है । वही तो है मेरी प्यारी मॉ ।

मंदिर मस्जिद गुरूद्वारा,  अपनी हथेली मे समाती है,  आशीश के फूल बिछा,  राह जो सरल बनाती है । वही तो है मेरी प्यारी मॉ ।

कवि की कविता होती अधूरी,  मॉ की ब्याख्या होती न पूरी । शब्द चाहे कितने भी रच ले,  जिस पर बेबस दुनिया सारी । वही तो है मेरी प्यारी मॉ ।

ईश ने धरकर मॉ का रूप , दिखाया विश्व को निज स्वरूप । जिसकी दुआओ के आगे,  रुक जाता भाग्य का धूप । वही तो है मेरी प्यारी मॉ ।

रत्ना बापुली, लखनऊ 

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