मेरी प्यारी माँ

सुबह सुबह मैने सारी रात रोई हुई आंखों को छुपाया था… पर मेरी मां को मेरी लाल आंखों ने सब समझाया था…

मां ने प्यार से बैठा के सीने से लगाया था… “मै हूं ना” ये कह से फिर एक बार रूलाया था…

लिपट गया था सीने से मां के मैं फिर… बडे प्यार से माँ ने सर मे हाथ धुमाया था...

अब तो मां को छोड कर हर सक्श लगता मुझे पराया था... गमो के भयानक सायों से मां की दुवाओं ने ही तो मुझको बचाया था...

दिल का दर्द कुछ कहे बिना जान लेती है... मेरी खुशी के लिए वा हर बात मान लेती है...

याद है मुझको जब उस बेवफा के प्यार में मैने धोखा खाया था... “वो भी किसी की बेटी है, उसकी भी कुछ मजबूरियां है” ये कह के मेरी मां ने मुझे समझाया था...

हर दर्द को सह कर खुश रहती है, बच्चों के लिए जो हर सितम सहती है... घर में तंगी की वजह से बच्चों को खाना खिला कर “मुझे भूख नही है” ये कह कर खुद भूखी रहती है...

जो कुछ देकर कुछ पाने की चाह ना रखे... बच्चों के लिए दुनिया कि दिल में परवाह ना रखे...

उसे खुदा की पाक पवि़त्र चाह कहतें है... जो मर कर भी जिन्दगी दे मेरे दोस्त उस पाक सूरत को “मां” कहते है.....

माँ की इच्छा

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