पत्थर था मै, मोम बनाकर छोड़ दिया, बदन को मेरे यूँ फूलों सा मरोड़ दिया ! उठता, चलता और फिर गिरता था मै, हिम्मत कमबख्तों ने, मेरा तोड दिया! ना मै था उसका वो मुक्कमल किताब, पढ़ा उसने खूब फिर मुझे फाड़ दिया! था शख्स वो कैसा जो लूटा खुब मुझे, शख्स के इन बातों ने मुझे झंझोड़ दिया ! लिखता था जिसकी नीली आंखें देखकर, सितमगर शख्स ने, दुनिया उजाड दिया! सांस समय मेरा बाकी थी अभी जहां में, जालिमों ने खुदा से मेरा तार जोड़ दिया! यूं मिले ना हमसे कोई काम था उन्हे, पर, क्यूं 'कुमार' को रदीफ़ बनाकर छोड़ दिया !