जगन्नाथपुरी मंदिर का चमत्कार

जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है. पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है.  पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है और यह 5 कोस यानी 16 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है.माना जाता है कि इसका लगभग 2 कोस क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में डूब चुका है. इसका उदर है समुद्र की सुनहरी रेत जिसे महोदधी का पवित्र जल धोता रहता है. सिर वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में है जिसकी रक्षा महादेव करते हैं. शंख के दूसरे घेरे में शिव का दूसरा रूप ब्रह्म कपाल मोचन विराजमान है.

माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा का एक सिर महादेव की हथेली से चिपक गया था और वह यहीं आकर गिरा था, तभी से यहां पर महादेव की ब्रह्म रूप में पूजा करते हैं. शंख के तीसरे वृत्त में मां विमला और नाभि स्थल में भगवान जगन्नाथ रथ सिंहासन पर विराजमान है .कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है. मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है. प्रसाद की एक  मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती 

दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद. लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन . मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक  पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है. ये किसी चमत्कार से कम नहीं है . 

गायब हो जाता है यह मंदिर

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