संध्या वंदन का तरीका

संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते है. यह समय मौन रहने का भी है .इस समय के दर्शन मात्र से मन और शरीर के सारे संताप मिट जाते है .इस समय भोजन नींद यात्रा आदि का त्याग कर दिया जाता है .

कैसे करे संध्या वंदन - संध्या वंदन के चार प्रकार है - प्रार्थना-स्तुति, ध्यान-साधना,कीर्तन-भजन और पूजा-आरती

1-प्रार्थना: संधिकाल में की जाने वाली प्रार्थना को संध्या वंदन उपासना, आराधना भी कह सकते हैं.इसमें निराकार ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का भाव व्यक्त किया जाता है. इसमें भजन या कीर्तन नहीं किया जाता.

2-.ध्यान : ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता.ध्यान का मूलत: अर्थ है जागरूकता. अवेयरनेस ,ध्यान का अर्थ ध्यान देना, हर उस बात पर जो हमारे जीवन से जुड़ी है.

3-कीर्तन : ईश्वर, भगवान या गुरु के प्रति स्वयं के समर्पण या भक्ति के भाव को व्यक्त करने का एक शांति और संगीतमय तरीका है कीर्तन. इसे ही भजन कहते हैं.भजन करने से शांति मिलती है .

4-पूजा-आरती:पूजा करने के पुराणिकों ने अनेकों तरीके विकसित किए है. पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ति के समक्ष की जाती है जिसमें गुड़ और घी की धूप दी जाती है, फिर हल्दी, कंकू, धूम, दीप और अगरबत्ती से पूजा करके  उक्त देवता की आरती उतारी जाती है.

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