मेरे ज़ख्मों की तलबगार बहुत है

अब दिल कि तरफ दर्द की यलगार बहुत है, दुनिया मेरे ज़ख्मों की तलबगार बहुत है ! अब टूट रहा है मेरी हस्ती का तसव्वुर, इस वक़्त मुझे तुझसे सरोकार बहुत है ! मिटटी की ये दीवार कहीं टूट ना जाये, रोको कि मेरे खून की रफ़्तार बहुत है ! हर सांस उखड जाने की कोशिश में परेशान, सीने में कोई है जो गिरफ़्तार बहुत है ! पानी से उलझते हुए इंसान का ये शोर, उस पार भी होगा मगर इस पार बहुत है !

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