मेरा देश बदल रहा है

मेरा देश बदल रहा है और आगे बढ़ रहा है इस सरकारी नारेको हर देशवासी पढ़ रहा है आज हर नेता बस नागरिकों को छल रहा है देशकी हरआस्तीन में अनाकोंडा पल रहा है मंहगाई के बोझ से गरीब तबका दब रहा है बदन पर कपड़ा नहीं पेट आधा भर रहा है दाखिले मिलते नहीं बेरोजगार बढ़ रहा है, जिसे पढ़ना चाहिए वो राजनीति कर रहा है किसान के खेत खाली खुदकुशी कर रहा है योग का व्यापार, अद्भुत तरक्की कर रहा है कृषि है घाटे का सौदा, व्यापारी फल रहा है कालाधन जमाखोरीका खेलखूब चल रहा है देश का माहौल भी,अब कितना बदल रहा है राष्ट्रवाद खत्म हुआ अब क्षेत्रवाद पल रहा है काम तो हुआ नहीं पाँच साल को टल रहा है ये खागये वो ले गये,ये राग कबसे चल रहा है देश आगे कितना बढ़ा व कितना बदल रहा है इसका तो पता नहीं,विज्ञापन खूब चल रहा है

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