महसूस किया है अक्सर

महसूस किया है अक्सर  गुज़रते हुए नज़दीक से हवाओं को दूर जाते अपनों और रुक गए एहसासों को

कईयों बार चाहा कि देखूँ आईने में ख़ुद को पर वक़्त की आंधियों ने जाने-अनजाने ढँक दिया मेरे चेहरे को गर्द से

जितना चाहा दूर रहूं खिंचता रहा उतना ही उसी पुराने एहसास से अपनों से दूर होकर भी  जीता रहा अपनों की आस से

सब जानकर भी मैं यहाँ सबको अपना मानकर बस अनजान ही बनता रहा हर एक रात की नींद में एक ही ख़्वाब पलता रहा

मैं मजबूर नहीं बंधा हूँ बस अपने ख़ुद के शऊर से क्यूँ उछालूं पत्थर किसी पे सरे-बाज़ार अपनी ओर से !

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