मैं तो अभीभी ऊलझा हूँ

मैं तो अभीभी..." कुछ सीखा हूँ, कुछ जाना हूँ। जीवन के इस पाठशाला में, मैं तो अभी भी चेला हूँ। कुछ सुलझा हूँ, कुछ समझा हूँ। जीवन के इस पहेली से, मैं तो अभीभी ऊलझा हूँ। कुछ पाया है, कुछ कमाया है। जीवन के इस सफरमें, ख़ाली हाथ आया था, ख़ाली हाथ जाना है। कुछ माँगा है, कुछ चाहा है। जीवन ने इस झोलीमे, जो डाला उसे अपना बनाया है। कुछ मुरझा हूँ, कुछ घायल हूँ। फिरभी जीवन की इस कठिनाईयों से, मैं कभी न हारा हूँ।

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