मत पुछ मैं कैसे जीये जा रहा हूँ

मत पुछ मैं कैसे... जीये जा रहा हूँ... तेरी यादों से दिल... बहला रहा हूँ ॥ कैसे करूँ मैं बातें... नये दौर की... किस्से बीती सदी के... बता रहा हूँ ॥ गुज़रते वक़्त को... ग़र तौहिन कहूँ... पर चलते वक़्त से... मैं निभा रहा हूँ ॥ ना पुछ के तेरी... दिवानगी में सनम... कहाँ बसा हूँ... कितना तबाह रहा हूँ ॥ आदतों से तो मैं... कर भी लूँ सुलह... पर हादसों पे मैं... बस मरता रहा हूँ ॥ हदों में रहके... ज़मानें ने बूरा किया... बेपवाह होकर... तुझसे जुदा रहा हूँ ॥ मत पुछ मैं कैसे जीये... जा रहा हूँ... तेरी यादों से दिल... बहला रहा हूँ ॥

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