जिसने जगाई थी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की अलख

आज हम स्वतंत्र भारत में भले ही सांस ले रहे हो लेकिन भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने में उन महान स्वाधीनता संग्राम सेनानियों का योगदान है, जिन्होंने अपने प्राणों की बलि देने से भी गुरेज नहीं किया। वस्तुतः अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की शुरूआत तो वर्ष 1857 में ही हो गई थी, जिसमे अग्रदूत बने मंगल पांडेय। जिन्होंने न केवल अंग्रेजों की गुलामी को दरकिनार किया बल्कि देश के नागरिकों में भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत व नफरत की अलख जगाने का कार्य किया। 

 
मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। सुदिष्ट पांडे और गरीब ब्राह्मण के परिवार में जन्म लेने वाले मंगल पांडे ने भले ही मजबूरी में अंग्रेजों की सेना में नौकरी  की हो लेकिन उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा था और यही कारण रहा कि वे बगावत की शुरूआत करने में बिल्कुल भी हिचके नहीं। इतिहासकारों के अनुसार उस जमाने में अंग्रेजों की सेना में भी भेदभाव होता थ्ज्ञा। इसके चलते उंची जाति के लोगों को पानी पीने के लिये जहां पीतल का लोटा दिया जाता था वहीं नीची जाति वालों को मिट्टी का बर्तन दिया जाता था। 
 
इतिहासकारों ने बताया कि मंगल पांडे की ड्यूटी बैरकपुर छावनी में थी, जहां सफाईकर्मी रामटहल ने सिपाही मंगल पांडे से पानी पीने के लिये लोटा मांगा, तो उन्होंने इनकार कर दिया। इस पर रामटहल ने बताया कि यदि उसे लोटा देने से या छूने भर से आपका धर्म भ्रष्ट हो रहा है तो फिर अंग्रेेजों द्वारा चलाने के लिये दिये जाने वाले कारतूस से आपका धर्म बच जायेगा। मंगल पांडे ने जब उससे स्पष्ट कहने के लिये कहा तो रामटहल ने बताया कि अंग्रेजों द्वारा गाय और सुअर की चर्बी से बने कारतूस दिये जाते है, जिसकी टोपी खींचकर उपयोग में लाया जाता है। 
 
बस यहीं से मंगल पांडे ने विद्रोही स्वरूप धारण कर लिया। अंग्रेजी सरकार को मंगल का विद्रोह रास नहीं आया और उन्हें फांसी पर चढ़ाने का हुक्म दिया। आखिरकार 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे देश के लिये फांसी पर चढ़ गये। आज महान क्रांतिकारी, शहीद मंगल पांडे की पुण्य तिथि पर उन्हें शत-शत नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित है।

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