मन चंगा कहने का तात्पर्य यह है. की यदि आपका मन शुद्ध- साफ है तो मानों आपने गंगा स्नान कर लिया सारे तीर्थ के दर्शन कर लिए क्योंकि मन ही सब कुछ है . आपके मन में आये विचारों का समावेश ही आपके जीवन की पुष्टि करता है. की आप कैसे जीवन यापन कर रहे है. व्यक्ति धन, दौलत ,वैभव ,पद , आदि से महान नहीं बनता उसके जीवन में महानता विचारों व भावों से उत्पन्न होती है . यह तो आप भी देख रहे होंगें की समस्त साधनों के होते हुए भी लोगों को किसी न किसी चीज की कमी बनी हुई है . उनके मन में स्थिरता नहीं है तृष्णा दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है. जिससे व्यक्ति बहुत परेशान सा व दुःख व कष्ट सा महसूस करता है. ये सब मन के विचारों से ही होता है. यदि मन में शांति नहीं है तो आप जीवन भर खुस नहीं रह सकते है .चाहे आपके पास कितना भी धन दौलत क्यों न हो . मन की एकाग्रता ,विचारो की महानता व भावों की प्रखरता ही आपको आगे की और ले जाएगी .जीवन को सही ढंग से जीने व पद प्रतिष्ठा पाने के लिए आपके भाव सही होना चाहिए . आप कितने भी धर्म -कर्म, पूजा -पाठ कर ले और चाहे कितने भी तीर्थ कर ले यदि आपके मन के विचार सही नहीं है तो ये सब व्यर्थ है. इनका कोई अस्तित्व नहीं रह जाता आप किसी के बारे में अच्छा नहीं सोच रहे है .उसके प्रति गलत विचार प्रकट कर रहे है .तो यह गलत है आप अपने मन के भाव को सही दिशा प्रदान करें . यदि आपके भाव ,विचार सही है तो मानों आपने सबसे बड़ा धार्मिक कार्य कर लिया जीवन में जरूरी नहीं है की आपको तीर्थ यात्रा करने से ही पुन्न की प्राप्ति होगी. उससे भी बढ़कर है यदि आप अपने विचारो में शुद्धता , मन में एकाग्रता के साथ ही भगवान का ध्यान करते है तो आपका जीवन सफल हो सकता है .